النية واجبة للصوم، لا يكون صومًا بدون نية. ملحوظة - (النية تعبر عن القصد في القلب، ولكن قولها باللسان يستحب).
نیت کا بیان
statement of intention
Intention (niyat) is obligatory for fasting. Fasting is not valid without the intention. Note: Intention refers to the intention of the heart, although expressing it verbally is recommended.
नियत का बयान
नियत रोज़े के लिए फ़र्ज़ है बिना नियत के रोज़ा नहीं होता, नोट- (नियत दिल के इरादे को कहते है लेकिन ज़ुबान से कहना मुस्तहब है,)
1
بِصَومِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
میں نے کل (یانی آنے والے وقت) کے روزے کی نیت کی جو کہ رمضان کے مہینے میں ہے
"I intend to observe the fast of tomorrow (i.e. the time to come) from the month of Ramadan."
After having the pre-dawn meal (Suhoor), recite this supplication. Although the exact words of this supplication are not proven from a Hadith, these words are presented as an example for people's convenience and are taught. Therefore, along with making the intention from the heart, if someone uses these words or other words, it is better to verbally express the intention as well.
Note: Some people say that reading these words of intention is forbidden and unlawful because it contains the word "غَدٍ" (ghadan) which means "tomorrow." Therefore, it is translated as "I intend to fast tomorrow, but I am fasting today and intend to do so tomorrow." Hence, it is considered forbidden. May Allah forgive them for their lack of knowledge and ignorance. Let's see how "غَدًا" is used in Arabic. First, let's look at the Quran where the word "غَدًا" appears in Surah Al-Kahf, verse 23 - وَلَا تَقُولَنَّ لِشَا۟ىْءٍ إِنِّى فَاعِلٌۭ ذَٰلِكَ غَدًا (Translation: "And never say of anything, 'Indeed, I will do that tomorrow.'") Now, let's see what "غَدٍ" means in Arabic. In Tafsir Kasshaf, it says: غَداً أى فيما يستقبل من الزمان (Translation: "Tomorrow means in the time to come"). The word "غَدًا" is used to refer to the future time. Now, when someone observes the pre-dawn meal (suhoor), they are referring to the time after suhoor because they are either eating or have already eaten suhoor during suhoor time. After the end of suhoor time, they cannot eat anymore, so after having suhoor, they say, "I intend to fast tomorrow," referring to the coming time because suhoor is done at night. Therefore, this is completely permissible and recommended. Those who misinterpret and mislead Muslims by giving wrong meanings should be warned against.
मैंने कल (यानी आने वाले वक़्त) के रोज़े की नियत की जो कि रमज़ान के महीने में है
सहरी करने के बाद ये दुआ पढ़ें, हालाँकि इस दुआ के अलफ़ाज़ हदीस शरीफ से साबित नहीं है नीज़ ये दुआ नहीं बल्कि नियत के अलफ़ाज़ हैं जो बतौर मिसाल लोगों की सहूलियत के लिए लिखे और सिखाये जाते हैं लिहाज़ा दिल से नियत करने के साथ-साथ अगर कोई ये अलफ़ाज़ या कोई और अलफ़ाज़ इस्तमाल करता है तो बेहतर है ताकि जुबांन से भी नियत का इज़हार कर दिया जाये,
नोट- कुछ लोग कहते है ये कि नियत के ये अल्फ़ाज़ पढ़ना नाजाइज़ व हराम है क्योंकि इसमें लफ़्ज़े غَدٍ (गदन) है जिसके मा’अना कल होता है लिहाज़ा इसका तर्जुमा हुआ की मेने कल के रोज़े की नियत की, रोज़ा आज रख रहे हैं और नियत कल की कर रहे है , इसलिए ये नाजाइज़ है, माज़ अल्लाह ये उनकी कम इल्मी व ला-इल्मी है, आइये जानते हैं अरबी में गदन किसके मा’अना में इस्तेमाल किया जाता है, सबसे पहले हम कुर’आन में देखते है गदन का लफ़्ज़ सूरह कहफ़ आयत 23- وَلَا تَقُولَنَّ لِشَا۟ىْءٍ إِنِّى فَاعِلٌۭ ذَٰلِكَ غَدًا {तर्जुमा- और हरगिज़ किसी बात को न कहना की मैं कल ये कर दूंगा} अब गदन का मा’अना देखिये कल के मा’अना किसे कहते है अरबी में, तफ़्सीर-ए-काश्शाफ़ में हैं غَداً أى فيما يستقبل من الزمان {तर्जुमा- कल यानी आने वाले वक़्त में} कल कहते है आने वाले वक़्त को, गदन लफ्ज़ आने वाले वक़्त के मा’अना के लिए आता है, अब-जब कोई शख्स सहरी करता है तो वो आने वाला वक़्त जो सहरी के बाद का वक़्त है क्योंकि सहरी में तो तो वो शख्स सहरी कर रहा होता है या कर चुका होता है, सहरी का वक़्त ख़त्म होने के बाद वो खा नहीं सकता तो सहरी करने के बाद वो कहता है में आने वाले वक़्त के रोज़े की नियत करता हूँ, जो वक़्त आने वाला है क्योंकि सहरी तो रात को होती है, इसलिए ये बिल्कुल जाइज़ और मुस्तहब है, जो लोग गलत मा’अना बता कर मुसलमानों को गुमराह करते है उनसे मुसलमानों को बचना चाहिए,
Bukhari-1
اَللَّهُمَّ لَکَ صُمْتُ وَعَلَی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ
اے ﷲ میں نے تیرے لئے روزہ رکھا اور تیرے ہی دیے ہوئے رزق پر افطار کی-
"O Allah, I am observing fast for Your sake, and I am breaking it with the sustenance You provided."
Recite "Bismillah" before open the fast, and when open the fast, recite this supplication. (Note: Although it is popular among the general public to recite this supplication when open the fast, this method is not correct and not proven from the Sunnah, as supplications are to be recited after open the fast.) There are other supplications mentioned in various Hadith books, but this particular supplication is more well-known, and some additional words have also been used with this supplication.
ऐ अल्लाह मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरे ही दिए हुए रिज़्क़ पर इफ्तार की
बिस्मिल्लाह पढ़ कर इफ्तार करलें और जब इफ्तार करलें तो ये दुआ पढ़े ( नोट- अवाम में मशहूर है की ये दुआ पढ़ कर इफ्तार की जाये हालाँकि ये तरीका सही नहीं और सुन्नत से साबित भी नहीं क्योंकी दुआ इफ्तार के बाद पढ़ी जायेगी) और कुछ कुतुब-ए-अहादीस में और भी कुछ दुआयें हैं लेकिन ये दुआ ज़्यादा मशहूर है, और इस दुआ को कुछ अलफ़ाज़ की ज़्यादती के साथ भी इस्तेमाल किया गया है..
Abu Dawood-2358
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