أول يوم من الحج هو 8 ذي الحجة
حج کا پہلا دن ٨ ذوالحجہ
1st Day of Hajj 8 Zilhijjah
The way Umrah's Ihram was worn, wear Hajj's Ihram in the same manner. If possible, come to the Haram Sharif, and here, it is recommended to perform Tawaf first, and then pray a 2 Unit (Rakat) Nafl for Ihram. However, if you cannot perform Tawaf, make the intention of Ihram and perform 2 Unit Nafl. It is disliked to perform Nafl prayers at inappropriate times without making the Ihram intention. If coming to the Haram Sharif is not possible, then wear Ihram in your resting place (room), and make the intention of Hajj: 'O Allah, for Your pleasure, I make the intention for Hajj. Make it easy for me and accept it.' Then make the Ihram intention for Hajj, reciting the Talbiyah three times softly: “لَبَّيْكَ ٱللَّٰهُمَّ لَبَّيْكَ، لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ، إِنَّ ٱلْحَمْدَ وَٱلنِّعْمَةَ لَكَ وَٱلْمُلْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ ” (Labbaik Allahumma Labbaik, Labbaika La Sharika Laka Labbaik, Inna al-Hamda wa an-Ni'mata Laka wa al-Mulk La Sharika Laka) Now, you have once again become a Muhrim (one in the state of Ihram), and the prohibitions of Ihram are now applicable to you. After Tulu-e-Aftab (sunrise), head towards Mina, being seated on the conveyance. Descend, and after the Fajr and Isha prayers, and when meeting Hajis, keep reciting the Talbiyah slowly for Men and silently for Women. Whenever reciting the Talbiyah, recite it at least three times. Pray the five prayers in Mina: Dhuhr, Asr, Maghrib, Isha on the 8th of Dhul-Hijjah, and Fajr on the 9th of Dhul-Hijjah."
हज का पहला दिन 8 ज़िल्हिज्जा
जिस तरीके से उमरह का ऐहराम बाँधा था उसी तरीके से हज का ऐहराम बाँध लें, मुमकिन हो तो हरम शरीफ में आयें, यहाँ आकर मुस्तहब ये है कि पहले तवाफ़ करें और उसके बाद ऐहराम के लिए 2 रकत नफ़्ल नमाज़ पढ़ें, लेकिन अगर तवाफ़ न कर सकें तो ऐहराम की नियत से 2 रकत नफ़्ल अदा करें, मकरूह वक़्त की सूरत में नफ़्ल नामाज़ पढ़े बगैर ऐहराम की नियत करके तल्बियह कहें, अगर हरम शरीफ में आना मुमकिन न हो तो अपनी आरामगाह (Room) ही ऐहराम बांध लें, और हज की नियत करें “ऐ अल्लाह में तेरी रज़ा के लिए हज की नियत करता हूँ / करती हूँ इसको मेरे लिए आसान फरमा और इसे क़ुबूल फरमा” फिर हज के ऐहराम की नियत से दरमियानी आवाज़ से 3 मर्तबा तल्बियह पढ़ें “لَبَّيْكَ ٱللَّٰهُمَّ لَبَّيْكَ، لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ، إِنَّ ٱلْحَمْدَ وَٱلنِّعْمَةَ لَكَ وَٱلْمُلْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ” (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक, इन्नल हम्दा वन्नि’अमता लका वल मुल्क ला शरीका लका) अब आप फिर से मोहरिम (ऐहराम वाले) बन गये, और ऐहराम की पाबंदियां आप पर आइद (लागू) हो गईं, तुलु-ए-आफताब के बाद मिना की तरफ रवाना हों, सवारी पर सवार होते, उतरते, सुबह व शाम नमाज़ों के बाद और हाजियों से मिलते हुए कसरत से तल्बियह पढ़ते रहें, मर्द बुलंद आवाज़ से और औरतें आहिस्ता आवाज़ से पढ़े, तल्बियह जब भी पढ़ें तो कम से कम 3 मर्तबा पढ़ें, मिना में ये 5 नमाज़ें पढ़ना मसनून हैं 8 ज़िल्हिज्जा की ज़ुहर, अस्र, मगरिब, इशा, और 9 ज़िल्हिज्जा की फज्र
Abu Dawood-1905,1788
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