وَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِيعُوا۟ ٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
اور نماز برپا رکھو اور زکوٰۃ دو اور رسول کی فرمانبرداری کرو اس امید پر کہ تم پر رحم ہو
And keep the prayer established and pay the obligatory charity and obey the Noble Messenger, in the hope of attaining mercy.
In the pillars of Islam, the third pillar is Zakat, which means giving charity. Its fundamental purpose is to assist the poor and needy. The essence of cleanliness in Zakat is to pay the prescribed right of Allah in our wealth and possessions with sincerity and contentment. Offering aims to spend money on those who deserve it and to increase one's wealth, thereby creating blessings in wealth. In the terminology of religion, Zakat is a financial worship that is obligatory on every Muslim who possesses the Nisab.
और नमाज़ बरपा रखो और ज़कात दो और रसूल की फरमा बरदारी करो इस उम्मीद पर कि तुम पर रहम हो
अरकान-ए-इस्लाम में से चौथा रुक्न ज़कात है जिसका मा’अना पाकीज़ा करना परवान चढ़ाना है, इसका बुनियादी मक़सद गरीबों मिस्कीनों की मदद करना है, पाकीज़गी से मुराद अल्लाह ता’अला ने हमारे माल व दौलत ने जो हक़ मुक़र्रर किया है उसको ख़ुलूस-ए-दिल और रज़ा मंदी से अदा किया जाये, और परवान चढ़ना से मुराद हक़दारों पर माल खर्च करना और अपनी दौलत को बढ़ाना जिससे माल में बरकत पैदा होती है दीन की इस्तिलाह में ज़कात ऐसी माली इबादत है जो हर साहिब-ए-निसाब मुसलमान पर फ़र्ज़ है
Al-Noor-56- Al-Baqara-110- At-Taubah-11- Al-A’araaf-156
قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : أَرَبٌ مَا لَهُ تَعْبُدُ اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُ بِهِ شَيْئًا ، وَتُقِيمُ الصَّلَاةَ ، وَتُؤْتِي الزَّكَاةَ ، وَتَصِلُ الرَّحِمَ .
ایک صحابیٔ رسول نے نبی کریم ﷺ سے پوچھا کہ یا رسول الله آپ مجھے کوئی ایسا عمل بتائیے جو مجھے جنت میں لے جائے ۔ اس پر صحابہ نے عرض کیا کہ آخر یہ کیا چاہتا ہے ۔ لیکن نبی کریم ﷺ نے فرمایا کہ یہ تو بہت اہم ضرورت ہے ۔ ( سنو ) اللہ کی عبادت کرو اور اس کا کوئی شریک نہ ٹھہراو ۔ نماز قائم کرو ۔ زکوٰۃ دو اور صلہ رحمی کرو ۔
One of the companions of the Prophet Muhmmad ﷺ asked the Holy Prophet Muhmmad ﷺ (peace be upon him) that O Rasool ALLAH ﷺ Messenger of Allah ﷺ please Tell me such a deed that will take me to heaven, on this the other companions said that this is what he wanted, but the Prophet Muhmmad ﷺ - The Prophet Muhammad ﷺ (peace and blessings of Allaah be upon him) said, this is a very important need (listen): worship Allah and do not associate any partner with Him, perform Namaz, give Zakaat, and be kind to others.
The command of Zakat is found in the Quran-e-Majeed and numerous places in the Hadith literature. It is obligatory for every Muslim to give 2.5% of their wealth to their needy and poor Muslim brothers, as it is their right.
एक सहाबी-ए-रसूल ने नबी-ए-पाक ﷺ से पूछा कि या रसूल अल्लाह ﷺ आप मुझे को ऐसा अमल बताइये जो मुझे जन्नत में ले जाये, इस पर दूसरे सहबियों ने अर्ज़ किया कि आखिर ये चाहता किया है, लेकिन नबी-ए-करीम ﷺ ने फ़रमाया ये तो बहुत अहम ज़रूरत है (सुनो) अल्लाह की इबादत करो और उसका कोई शरीक न ठहराओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो, और सिला रहमी करो
ज़कात के लिए कुर’आन-ए-मुक़द्दस में और तमाम क़ुतुब-ए-अहादीस में बे-शुमार जगह पर ज़कात की फ़र्ज़ियत का हुक्म है, और हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है कि वो अपने माल का 2.5 % हिस्सा अपने गरीब,मिस्कीन मुसलमान भाइयों को दे जो कि उनका हक़ है
Bukhari-1396,1398- Muslim-979- Ibne Abi Shaiba-9895,9896- Musnad Ahmad-3361,3363
عن علي رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: « قد عفوت عن الخيل والرقيق فهاتوا صدقة الرقة من كل أربعين درهماً درهم، وليس فى تسعين ومائة شىء فإذا بلغت مائتين ففيها خمسة دراهم
حضرت علی رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ رسول صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں نے گھوڑوں اور لونڈی و غلام کی زکاۃ معاف کر دی (یعنی یہ تجارت کے لیے نہ ہوں تو ان میں زکاۃ نہیں )پس چاندی کی زکاۃ دو ہر چالیس درہم پر ایک درہم (لیکن خیال رہے ) ایک سو نوے درہم میں زکاۃ نہیں ہے، جب دو سو درہم پورے ہوں گے تب زکاۃ واجب ہوگی اور زکاۃ میں پانچ درہم دینے ہوں گے ۔
The narration from Hazrat Ali (may Allah be pleased with him) states that the Prophet Muhammad ﷺ (peace be upon him) said: "I have exempted the Zakat of horses, camels, and slaves. (That is, if they are not for trade, then there is no Zakat on them.) Pay Zakat on silver, giving one Dirham for every forty Dirhams. (But keep in mind) there is no Zakat on one hundred and ninety Dirhams. When the number reaches two hundred Dirhams, Zakat becomes obligatory, and five Dirhams must be given in Zakat."
The obligation of Zakat falls upon a Muslim who possesses 7.5 tolas of gold or 52.5 tolas of silver, or their equivalent value in any of these metals. When one year passes with the possession of such wealth, it becomes obligatory to pay Zakat. The amount of which is 2.5%.
हज़रत अली रदी अल्लाहु ता’अला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया मैंने घोड़ो और लोंडी व गुलाम की ज़कात माफ़ कर दी (यानी ये तिजारत के लिए न हो तो तो इनमें ज़कात नहीं) पस चांदी की ज़कात दो, हर चालीस दिरहम पर एक दिरहम (लैकिन ख्याल रहे) 190 दिरहम में ज़कात नहीं जब 200 दिरहम पूरे होंगे तब ज़कात वाजिब होगी और ज़कात में 5 दिरहम देने होगें
ज़कात उस मुसलमान पर फ़र्ज़ है जिसके पास 7.5 तोले सोना या 52.5 तोले चांदी हो या इन दोनों में से किसी एक के बराबर कीमत हो और जब उस पर एक साल गुज़र जाये तो उसकी ज़कात अदा करना फ़र्ज़ हो जाता है, जिसकी मिक़्दार 2.5% है
tirmizi-620,631,632,- Ibne Maajah-1992,1790-Abu Dawood-1574,1575 Aalamgeeri-1/168
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